महान सम्राट विक्रमादित्य |
आज हम जिस
व्यक्तित्व का आप से परिचय करवा रहे हैं उन्हें इतिहास एवं भारतवर्ष महान सम्राट
विक्रमादित्य के नाम से जानता है। भारत में चक्रवर्ती सम्राट उसे कहा जाता है
जिसका की संपूर्ण भारत में राज रहा हो। ऋषभदेव के पुत्र राजा भरत पहले चक्रवर्ती
सम्राट थे। विक्रम सिंह, विक्रम बेताल और
सिंहासन बत्तीसी की कहानियां महान सम्राट विक्रमादित्य से ही जुड़ी हुई है। कलिकाल
के 3000 वर्ष बीत जाने पर 101
ईसा
पूर्व सम्राट विक्रमादित्य का जन्म हुआ। उन्होंने 100 वर्ष तक राज्य किया। विक्रमादित्य भारत के प्राचीन नगरी
उज्जयिनी के राज सिंहासन पर बैठे | विक्रमादित्य
अपने ज्ञान वीरता और उदार शीलता के लिए प्रसिद्ध थे। जिन के दरबार में नवरत्न रहते
थे। कहा जाता है कि विक्रमादित्य पड़े पराक्रमी थे और उन्होंने शकों को परासत किया
था। सम्राट विक्रमादित्य अपने राज्य की जनता के कष्ट और उनके हालचाल जानने के लिए
वेश बदलकर नगर में भ्रमण करते थे। राजा विक्रमादित्य अपने राज्य में न्याय
व्यवस्था कायम रखने के लिए हर संभव प्रयास करते थे। कहा जाता है कि मालवा में विक्रमादित्य के भाई भरतरी का
शासन था। भरतरी के शासनकाल में शक्खों का आक्रमण बढ़ गया था। भरतरी ने वैराग्य
धारण कर जब राज्य त्याग दिया तो विक्रम ने शासन संभाला और उन्होंने ईसा पूर्व 57
58 में सबसे पहले शकों को
अपने शासन क्षेत्र से बाहर खदेड़ दिया। उन्होंने ही विक्रम संवत की शुरुआत की। अपने राज्य का विस्तार का
आरंभ किया। विक्रमादित्य ने भारत की भूमि को विदेशी शासकों से मुक्त कराने के लिए
एक बेहतर अभियान चलाया। कहते कि उन्होंने अपनी सेना को फिर से गठित किया। उनकी
सेना विश्व की सबसे शक्तिशाली सेना बताई गई है जिसने भारत की सभी दिशाओं में एक
अभियान चलाकर भारत को विदेशियों और अत्याचारी राजाओं से मुक्ति दिलाई| राजा विक्रम का भारत की संस्कृत प्राकृत अर्धमगधी, हिंदी, गुजराती, मराठी, बंगला आदि भाषाओं के ग्रंथों में विवरण मिलता
है। उनकी वीरता उदारता, दया, क्षमा आदि गुणों की अनेक गाथाएं भारतीय साहित्य
में भरी पड़ी है। नवरत्न को रखने की परंपरा महान सम्राट विक्रमादित्य ने शुरू की थी। जिसे तुर्क बादशाह अकबर ने भी
अपनाया था| सम्राट विक्रमादित्य के
नवरत्नों के नाम धनवंतरी सपना, अमर सिंह,
शंकु बेताल भट्ट खटखरपर, कालिदास, वराह मिहिर और
पुरुष कह जाते हैं। इन नवरत्नों में उच्च कोटि के विद्वान श्रेष्ठ कवि गणित के
प्रकांड विद्वान और विज्ञान के विशेषज्ञ आदि सम्मिलित थे। हमारे देश कई विद्वान
वैसे हुए हैं जो विक्रम संवत को उज्जैन के राजा विक्रमादित्य द्वारा ही परिवर्तित
मानते हैं। इस समय के परिवर्तन की पुष्टि ज्योतिर्विद्या भरण ग्रंथि में होती है
जो कि 734 ईसा पूर्व में लिखा गया
था। इसके अनुसार विक्रमादित्य ने 3044 कल याद 57 ईसा पूर्व विक्रम
संवत लाया।
विक्रमादित्य के बारे में प्राचीन साहित्य में भी वर्णन मिलता है। संपूर्ण धरती के लोग उनके नाम से परिचित हैं इतिहासकारों के अनुसार उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य का राज्य भारतीय उपमहाद्वीप के अलावा ईरान, इराक और अरब में भी था| पुराणों और अन्य ऐतिहासिक ग्रंथ के अनुसार यह पता चलता है कि अरब और मिस्र भी विक्रमादित्य के अधीन थे। तुर्की के इस्तांबुल की प्रसिद्ध सुल्तानिया में एक ऐतिहासिक ग्रंथ है। उसमें राजा विक्रमादित्य से संबंधित एक शिलालेख है जिसमें कहा गया कि वे लोग भाग्यशाली हैं जिसने राजा विक्रमा के राज्य में अपना जीवन व्यतीत किया। इसके अलावा भारत में और भी सम्राट हुए हैं जिनके नाम के आगे विक्रमादित्य लगाया गया है जैसे कि शुद्रक, चंद्रगुप्त द्वितीय, शिलादित्य, यशोवर्धन आदि दरअसल आदित्य शब्द देवताओं से प्रयुक्त है। बाद में विक्रमादित्य की प्रसिद्धि के बाद राजा विक्रमादित्य की उपाधि दी जाने लगी।
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