History Gala

Wednesday, July 14, 2021

ऑपरेशन ब्लू स्टार


'ऑपरेशन ब्लू स्टार' भारतीय सेना द्वारा अमृतसर स्थित  स्वर्ण मंदिर परिसर को खालिस्तान समर्थक जनरैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों से मुक्त कराने के लिए चलाया गया अभियान था। ये भारत के इतिहास में एक ऐसी घटना जिसने पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की मौत की पटकथा लिखी थी क्योंकि ये ही उनकी हत्या का मुख्य कारण था, जिसने देश की राजनीति की दिशा को ही मोड़ दिया था।

क्यों चला था 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' 

'ऑपरेशन ब्लू स्टार' उनके खात्मे के लिए चलाया गया था, जो अलगाववादी विचारधारा को जन्म दे रहे थे। पंजाब में अलग राज्य की मांग की समस्या ने सिर उठाना शुरू कर दिया था। पंजाब समस्या की शुरुआत 1970 के दशक से अकाली राजनीति में खींचतान और अकालियों की पंजाब संबंधित मांगों को लेकर शुरु हुई थी। पहले साल 1973 में और फिर 1978 में अकाली दल ने आनंदपुर साहिब प्रस्ताव पारित किया। मूल प्रस्ताव में सुझाया गया था कि भारत की केंद्र सरकार का केवल रक्षा, विदेश नीति, संचार और मुद्रा पर अधिकार हो जबकि अन्य विषयों पर राज्यों को पूर्ण अधिकार हों। अकाली ये भी चाहते थे कि भारत के उत्तरी क्षेत्र में उन्हें स्वायत्तता मिले।

यही वह वक्त भी था जब पंजाब में अकाली दल कांग्रेस का विकल्प बनकर उभर चुका था, इंदिरा गांधी ने इसके जवाब के तौर पर सरदार ज्ञानी जैल सिंह को पंजाब के मुख्यमंत्री के तौर पर खड़ा किया। जैल सिंह का बस एक ही मकसद था-शिरोमणि अकाली दल का सिखों की राजनीति में वर्चस्व कम करना। इन सब हालात के बीच एक शख्स का उदय हुआ जिसका नाम था जरनैल सिंह भिंडरावाले, जिसे पहले अकाली दल के काट के लिए लाया गया था लेकिन बाद में वो सरकार के लिए चुनौती बन गया।

खालिस्तान आंदोलन का परिचय

आजादी के बाद खालिस्तान का आंदोलन शुरू हो गया था। यह आंदोलन भारत से पंजाब को अलग करके खालिस्तान नाम से एक नए देश बनाने के लिए किया गया था। इससे भारत में आतंक के एक नए अध्याय की शुरुआत हुई जिसका समापन 6 जून, 1984 को ऑपरेशन ब्लू स्टार के साथ हुआ। हालांकि इस ऑपरेशन के साथ सिख अलगाववाद करीब-करीब खत्म हो गया लेकिन अभी दुनिया भर में कई संगठन हैं जो पंजाब को अलग करने की मांग करते हैं।

क्यों हुआ ऑपरेशन ब्लूस्टार?

1983 में पंजाब पुलिस के डीआईजी एएस अटवाल ही हत्‍या से माहौल गर्मा गया। उसी साल जालंधर के पास बंदूकधारियों ने पंजाब रोडवेज की बस में चुन-चुनकर हिंदुओं की हत्‍या कर दी। इसके बाद विमान हाईजैक हुए। स्थिति काबू से बाहर हो गई और केंद्र सरकार ने राज्‍य में राष्‍ट्रपति शासन लगा दिया। अब तक स्‍वर्ण मंदिर को अपना ठिकाना बना चुका भिंडरावाला सरकार के निशाने पर आ चुका था और स्‍वर्ण मंदिर को चरमपंथियों के कब्‍जे से मुक्‍त कराने के लिए ऑपरेशन ब्‍लूस्‍टार प्‍लान किया गया।

3 जून की रात

केंद्र सरकार ने भारतीय थल सेना को स्‍वर्ण मंदिर को स्‍वतंत्र कराने का जिम्‍मा सौंपा। जनरल बरार को ऑपरेशन ब्‍लूस्‍टार की कमान सौंपी। 3 जून को सेना ने अमृतसर में प्रवेश किया। चार जून की सुबह गोलीबारी शुरू हो गई। सेना को चरमपंथियों की ताकत का अहसास हुआ तो अगले ही दिन टैंक और बख्‍तरबंद गाड़ियों का उपयोग किया गया। 6 जून की शाम तक स्‍वर्ण मंदिर में मौजूद भिंडरावाला व अन्‍य चरमपंथियों को मार गिराया गया। लेकिन तब तक मंदिर और जानमाल का काफी नुकसान हो चुका था।

ऑपरेशन के बाद सरकार ने श्वेत पत्र जारी कर बताया कि ऑपरेशन में भारतीय सेना के 83 सैनिक मारे गए और 248 अन्य सैनिक घायल हुए। इसके अलावा 492 अन्य लोगों की मौत की पुष्टि हुई और 1,592 लोगों को हिरासत में लिया गया। 31 अक्‍टूबर 1984 को तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्‍या कर दी गई और दंगे भड़क गए।

क्या हुआ खालिस्तान का?

1990 के दशक में खालिस्तान की मांग कमजोर पड़ती गई। हालांकि ऑपरेशन ब्लू स्टार की तारीख पर आज भी हर साल पंजाब में विरोध प्रदर्शन होता है। ब्रिटेन, कनाडा और अमेरिका में रह रहे सिख समुदायों में अभी भी अलग खलिस्तान को लेकर मांग उठती रही है। समझा जाता है कि भारत से बाहर दो से तीन करोड़ सिख रह रहे हैं। उनमें से ज्यादातर का भारत के पंजाब से कोई न कोई जुड़ाव है।


Monday, July 12, 2021

ऑपरेशन शक्ति - पोखरण की कहानी

पोखरण-II
पोखरण-II

पोखरण-II पांच परमाणु बम परीक्षण विस्फोटों की श्रृंखला थी जो भारत द्वारा मई 1998 में भारतीय सेना के पोखरण टेस्ट रेंज में किए गए थे। यह भारत का दूसरा प्रयास था जो मई 1974 में आयोजित किए गए पहले परीक्षण,  "स्माइलिंग बुद्धा" के बाद सफल हुआ।

पोखरण II 

आज से बीस साल पहले तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्रा की अचानक घोषणा ने भारत की दुनिया को उलट कर रख दिया था। 11th और 13th मई को, भारत ने पांच परमाणु परीक्षणों का एक सेट किया, जिसने दुनिया को चौंका दिया।उन परीक्षणों ने भारत को एक ऐसी सड़क पर खड़ा कर दिया, जिससे भारत को केवल एक परमाणु शक्ति ही नहीं, बल्कि वैश्विक मान्यता मिली।बहुत सरलता से, इसने भारत के लिए जगह बनाने के लिए वैश्विक उच्च तालिका प्राप्त करने में मदद की।

लेकिन क्या आप इस बात को जानते हैं कि अमेरिका सहित भारत के सभी शत्रु देश भारत को इस परमाणु परीक्षण को ना करने देने के लिए पूरी तरह से एकजुट थे l अमेरिका की ख़ुफ़िया एजेंसी CIA  भारत की हर एक हरकत पर गहरी नजर रखे हुए थी और उसने अरबों रुपये खर्च करके पोखरण पर नजर रखने वाले चार सैटेलाइट लगाए थे, ये ऐसे सैटेलाइट थे जिनके बारे में कहा जाता था कि ये जमीन पर खड़े भारतीय सैनिकों की घड़ी में हो रहा समय भी देख सकते थे l लेकिन भारत ने CIA  और इन सभी सैटेलाइटस को मात दे दी l

आइये अब जानते हैं कि भारत ने कैसे ये परीक्षण किये थे?

परीक्षण की जगह थी  पोखरण | भारत ने इस जगह को इसलिए चुना था क्योंकि यहाँ पर मानव बस्ती बहुत दूर थी l

वैज्ञानिकों ने इस मिशन को पूरा करने के लिए रेगिस्तान में बालू के बड़े बड़े कुए खोदे और इनमे परमाणु बम रखे गए और फिर कुओं को बालू से ढका गया. इन कुओं के ऊपर बालू के पहाड़ बना दिए गए जिन पर मोटे मोटे तार निकले हुए थे जिनमे आग लगायी गयी और बहुत जोर का धमाका हुआ l

 इस धमाके के कारण  एक ग्रे रंग का बादल बन गया थाl इससे कुछ दूरी पर खड़ा 20 वैज्ञानिकों का समूह इस पूरे घटना क्रम पर नजर रखे हुए था जैसे ही यह विस्फोट हुआ तो एक वैज्ञानिक ने कहा कि , 'कैच अस इफ यू कैन', अर्थात 'अगर पकड़ सको तो हमें पकड़ो'l यह अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी को खुली चुनौती के तौर पर बोला गया था l

इस पूरे प्रोजेक्ट के दौरान वैज्ञानिक एक दूसरे से कोड भाषा में बात करते थेl इस पूरी प्रक्रिया के दौरान वैज्ञानिकों के बहुत से  झूठे नाम भी रखे गए थे और ये नाम इतने सारे हो चुके थे कि कभी-कभी तो साथी वैज्ञानिक एक दूसरे के नाम भी भूल जाते थेl  सभी को आर्मी की वर्दी में परीक्षण स्थल पर ले जाया जाता था ताकि ख़ुफ़िया एजेंसी CIA को यह अंदेशा हो कि आर्मी के जवान ड्यूटी कर रहे हैं l

पांच परमाणु उपकरणों को ऑपरेशन शक्ति के दौरान विस्फोट किया गया।इस परीक्षण की सफलता पर भारतीय जनता ने भरपूर प्रसन्नता जताई लेकिन दुनिया के दूसरे देशों में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। इजरायल ही एकमात्र ही ऐसा देश था, जिसने भारत के इस परीक्षण का समर्थन किया था। इस परीक्षण के बाद अमेरिका, जापान, फ़्रांस, ब्रिटेन सहित लगभग सभी विकसित देशों ने भारत के खिलाफ प्रतिबन्ध लगाये थे l

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Wednesday, July 7, 2021

जगन्नाथ मंदिर के रहस्य

 

जगन्नाथ मंदिर
जगन्नाथ मंदिर

पुरी का प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर भक्तों के लिए महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह भारत में चार धाम तीर्थ स्थलों में से एक है, और यह वार्षिक रथ उत्सव या रथ यात्रा के लिए भी प्रसिद्ध है।मान्यता है कि भगवान विष्णु जब चारों धाम पर बसे तो सबसे पहले बदरीनाथ गए और वहां स्नान किया, इसके बाद वो गुजरात के द्वारिका गए और वहां कपड़े बदले.द्वारिका के बाद ओडिशा के पुरी में उन्होंने भोजन किया और अंत में तमिलनाडु के रामेश्वरम में विश्राम किया. पुरी में भगवान श्री जगन्नाथ का मंदिर है. 

पुरी के इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बालभद्र और बहन सुभद्रा की काठ (लकड़ी) की मूर्तियां हैं. लकड़ी की मूर्तियों वाला ये देश का अनोखा मंदिर है.जगन्नाथ मंदिर की ऐसी तमाम विशेषताएं हैं, साथ ही मंदिर से जुड़ी ऐसी कई कहानियां हैं जो सदियों से रहस्य बनी हुई हैं.

मंदिर से जुड़ी एक मान्यता है कि जब भगवान कृष्ण ने अपनी देह का त्याग किया और उनका अंतिम संस्कार किया गया तो शरीर के एक हिस्से को छोड़कर उनकी पूरी देह पंचतत्व में विलीन हो गई . मान्यता है कि भगवान कृष्ण का हृदय एक जिंदा इंसान की तरह ही धड़कता रहा .कहते हैं कि वो दिल आज भी सुरक्षित है और भगवान जगन्नाथ की लकड़ी की मूर्ति के अंदर है.

जगन्नाथ मंदिर के बारे में रोचक तथ्य

इस मंदिर की कुछ विशेष खासियत है जिसके कारण पर्यटक जगन्नाथ पुरी मंदिर का दर्शन करने के लिए आते हैं। आइये जानते हैं जगन्नाथ मंदिर के कुछ रोचक तथ्यों के बारे में।

  • जगन्नाथ मंदिर की विशेषता यह है कि मंदिर के ऊपर लगा झंडा हमेशा हवा के उल्टी दिशा में लहराता है। ऐसा प्राचीन काल से ही हो रहा है लेकिन अभी तक इसके पीछे के वैज्ञानिक कारणों के बारे में पता नहीं चल पाया है। श्रद्धालुओं के लिए सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक बात है।
  • जगन्नाथ मंदिर के शीर्ष पर सुदर्शन चक्र लगा हुआ है। यह अष्टधातु से बना है, इसे नीलचक्र के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन इसकी विशेषता यह है कि आप पुरी के किसी भी स्थान से खड़े होकर इस चक्र को देखें वह हमेशा आपको अपने सामने ही दिखायी देगा। यह वास्तव में आश्चर्य का विषय है, जो इसे खास भी बनाता है।
  • मंदिर के ऊपर लगा झंडा रोजाना शाम को बदला जाता है। खास बात यह है कि इसे बदलने वाला व्यक्ति उल्टा चढ़कर झंडे को बदलता है। जिस समय झंडा बदला जाता है, मंदिर के प्रांगण में इस दृश्य को देखने वालों की भारी भीड़ जमा होती है। झंडे के ऊपर भगवान शिव का चंद्र बना होता है।
  • मंदिर परिसर में पुजारियों द्वारा प्रसादम को पकाने का अद्भुत और पारंपरिक तरीका है। प्रसाद पकाने के लिए सात बर्तनों को एक दूसरे के ऊपर रखा जाता है और लकड़ी का उपयोग करके इसे पकाया जाता है। ऊपर के बर्तन का प्रसाद सबसे पहले और बाकी अंत में पकता है।
  • जगन्नाथ पुरी में हवा की दिशा में भी विशेषता देखने को मिलती है। अन्य समुद्री तटों पर प्रायः हवा समुद्र की ओर से जमीन की ओर आती है लेकिन पुरी के समुद्री तटों पर हवा जमीन से समुद्र की ओर आती है। इसके कारण पुरी अनोखा है।
  • आमतौर पर किसी भी मंदिर के गुंबद की छाया उसके प्रांगण में बनती है। लेकिन जगन्नाथ पुरी मंदिर के गुंबद की छाया अदृश्य ही रहती है। मंदिर के गुंबद की छायी लोग कभी नहीं देख पाते हैं।
  • वैसे तो हम अक्सर आकाश में पक्षियों को उड़ते हुए देखते हैं। लेकिन जगन्नाथ मंदिर की विशेषता यह है कि इस मंदिर के गुंबद के ऊपर से होकर कोई पक्षी नहीं उड़ता है और यहां तक कि हवाई जहाज भी मंदिर के ऊपर से होकर नहीं गुजरता है। अर्थात् भगवान से ऊपर कुछ भी नहीं है।
  • हिंदू पौराणिक कथाओं में भोजन को बर्बाद करना एक बुरा संकेत माना जाता है। मंदिर के संचालक इसका अनुसरण करते है। मंदिर जाने वाले लोगों की कुल संख्या हर दिन 2,000 से 2, 00,000 लोगों के बीच होती है। लेकिन मंदिर का प्रसादम रोजाना इस चमत्कारिक ढंग से तैयार किया जाता है कि कभी भी व्यर्थ नहीं होता है और ना ही कम पड़ता है। इसे प्रभु का चमत्कार माना जाता है।

Wednesday, June 30, 2021

पिछली सदी से दुनिया के सबसे बड़े परोपकारी :- जमशेदजी टाटा

  

Jamsetji Tata

3 मार्च, 1839 को गुजरात के नवसारी में जन्में जमशेदजी, नसरवानजी और जीवनबाई टाटा के इकलौते पुत्र थे। भले ही नसरवानजी पारसी पुजारियों के परिवार से ताल्लुक रखते थे, लेकिन वे व्यवसाय में हाथ आजमाने वाले परिवार के पहले सदस्य बने। उन्होंने बॉम्बे में एक एक्सपोर्ट ट्रेडिंग फर्म की स्थापना की। एक लड़के के रूप में, जमशेदजी को बहुत कम उम्र में अपने पिता की उद्यमशीलता कौशल विरासत में मिली थी।

प्रारंभिक जीवन

उनके माता-पिता ने युवा जमशेदजी की असाधारण अंकगणितीय क्षमताओं को पहचाना और उन्हें एक धर्मनिरपेक्ष शिक्षा देना चाहते थे। इसलिए 14 वर्षीय जमशेदजी को उनके पिता के साथ बंबई में रहने के लिए भेज दिया गया, जहां उनका दाखिला एलफिंस्टन कॉलेज में हुआ। उन्होंने आज के स्नातक के बराबर एक 'green scholar' का स्तर प्राप्त किया और 20 वर्ष की आयु में अपने पिता की फर्म में शामिल हो गए।

व्यवसाय

ऐसे समय में जब भारत 1857 के विद्रोह से उबर रहा था, जमशेदजी ने जापान, चीन, यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका में शाखाएं स्थापित करके अपने पिता के व्यवसाय को विदेशों में ले जाने में मदद की।

उन्होंने 1868में 21,000 रुपये की पूंजी के साथ एक व्यापारिक कंपनी शुरू की। जल्द ही, उन्होंने महसूस किया कि भारतीय कंपनियां कपड़ा उद्योग में प्रवेश कर सकती हैं, जिस पर उस समय अंग्रेजों का वर्चस्व था। 1869 में, उन्होंने बॉम्बे के चिंचपोकली में एक जीर्ण-शीर्ण मिल का अधिग्रहण किया, इसका नाम बदलकर एलेक्जेंड्रा मिल रखा और सूती कपड़े का उत्पादन शुरू किया। बाद में उन्होंने इसे बेच दिया और लाभ का इस्तेमाल नागपुर में अपनी मिल स्थापित करने के लिए किया। उन्होंने 1874 में 1.5 लाख रुपये की पूंजी के साथ सेंट्रल इंडिया स्पिनिंग, वीविंग एंड मैन्युफैक्चरिंग कंपनी नाम से एक उद्यम शुरू किया। 37 साल की उम्र में, उन्होंने एम्प्रेस मिल्स लॉन्च किया। बाद में, उन्होंने बॉम्बे और कूर्ला (वर्तमान कुर्ला) में मिलों की स्थापना की, जिससे वर्तमान टाटा समूह का गठन हुआ।

परोपकार, मानवतावाद

जमशेदजी के उद्यम न केवल उनकी लाभप्रदता और दक्षता के लिए, बल्कि मानवीय दृष्टिकोण और श्रम-अनुकूल नीतियों के लिए भी जाने जाते थे। उनका मानना ​​था कि भारत को गरीबी से बाहर निकालने का एकमात्र तरीका अनुशासित औद्योगीकरण है। उन्होंने अपने लिए चार लक्ष्य निर्धारित किए: एक लोहा और इस्पात कंपनी स्थापित करना; विज्ञान में भारतीयों को पढ़ाने के लिए एक विश्व स्तरीय शिक्षण संस्थान की स्थापना; एक होटल बनाने और एक हाइड्रो-इलेक्ट्रिक प्लांट स्थापित करने के लिए।

उन्होंने विदेशों में उच्च अध्ययन करने के लिए जाति और पंथ की परवाह किए बिना भारतीयों की मदद करने के लिए 1892 में जेएन टाटा एंडोमेंट की स्थापना की। ट्रस्ट अब तक योग्यता-आधारित छात्रवृत्ति प्रदान करता है। उन्होंने 1903 में ताजमहल होटल, बॉम्बे में अपने एक और सपने को साकार किया। उन्होंने 1898 में एक शोध संस्थान के लिए भूमि दान की, इसके लिए एक खाका तैयार किया और लॉर्ड कर्जन और स्वामी विवेकानंद की पसंद के समर्थन का अनुरोध किया। आखिरकार, भारतीय विज्ञान संस्थान अस्तित्व में आया और इसे भारत के अपनी तरह के बेहतरीन संस्थानों में गिना जाता है।

मृत्यु

1900 में जर्मनी की व्यापारिक यात्रा के दौरान जमशेदजी वहाँ गंभीर रूप से बीमार हो गए और 19 मई 1904 को नौहेम में उनका निधन हो गया। उन्हें टाटा समूह बनाने के लिए याद किया जाता है, जिसकी स्थापना 1868 में हुई थी, वर्तमान में टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, टाटा पावर और टाटा केमिकल्स सहित 100 से अधिक कंपनियां हैं।

Wednesday, June 23, 2021

सेलुलर जेल: अंडमान निकोबार की ऐतिहासिक जेल



सेलुलर जेल: अंडमान निकोबार की ऐतिहासिक जेल
सेलुलर जेल: अंडमान निकोबार की ऐतिहासिक जेल


सेलुलर जेल, जिसे 'काला पानी' के नाम से भी जाना जाता है, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में स्थित एक पुरानी औपनिवेशिक जेल है। भारत में अपने औपनिवेशिक शासन के दौरान अंग्रेजों द्वारा निर्मित, सेलुलर जेल का उपयोग विशेष रूप से राजनीतिक कैदियों को निर्वासित करने के लिए किया जाता था, जहां उन्हें अंग्रेजों के हाथों कई अत्याचारों का शिकार होना पड़ता था। जेल का निर्माण वर्ष 1896 में शुरू हुआ और 1906 में पूरा हुआ, जिसके बाद इसमें बटुकेश्वर दत्त, योगेंद्र शुक्ला और विनायक दामोदर सावरकर जैसे कई उल्लेखनीय स्वतंत्रता सेनानियों को रखा गया। जेल परिसर अब भारत सरकार के स्वामित्व में है और इसे ब्रिटिश काल के दौरान कैदियों के जीवन को प्रदर्शित करने वाले राष्ट्रीय स्मारक स्मारक के रूप में मान्यता प्राप्त है।

जेल भारत के इतिहास के सबसे भयानक और सबसे काले दौर की कहानी बयां करती है। वर्ष 1857 में सिपाही विद्रोह के तुरंत बाद, अंग्रेजों ने अंडमान और निकोबार के द्वीपों को जेलों के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया ताकि स्वतंत्रता नेताओं को सलाखों के पीछे डाल दिया जा सके। एकांत द्वीपों को देश के मुख्य भागों से उनके दूर के स्थान के कारण चुना गया था जहाँ कैदियों को देश की स्थिति से वंचित करने और उन्हें समाज से बाहर करने के लिए अंधेरे में रखा जाएगा।भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान, हजारों भारतीय सेलुलर जेल में कैद थे, उनमें से कई अमानवीय परिस्थितियों के कारण मारे गए, कई को मृत्यु तक फांसी पर लटका दिया गया और कई बस मर गए। आज, सेल्युलर जेल उन सभी संघर्षों की याद दिलाती है, जो हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने देश की स्वतंत्रता हासिल करने के लिए लड़े थे, और यह हमारे इतिहास का एक अनिवार्य हिस्सा है जिसे बरकरार रखा जाना चाहिए।

सेलुलर जेल का इतिहास

यद्यपि सेलुलर जेल का परिसर वर्ष 1906 में बनाया गया था, अंग्रेज 1857 के सिपाही विद्रोह के बाद से अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को जेल के रूप में इस्तेमाल कर रहे थे। विद्रोह के तुरंत बाद, विद्रोहियों का व्यापक निष्पादन हुआ, जबकि बचे हुए विद्रोहियों को द्वीपों में भगा दिया गया।राज्य के खिलाफ अपराधों के लिए सजा के तौर पर 933 कैदियों को अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भेजा गया था। कैदियों की लगातार बढ़ती संख्या को ध्यान में रखते हुए, वहां एक 'अंडमानी घर' का निर्माण किया गया, जो एक दमनकारी संस्था भी थी जो एक धर्मार्थ के रूप में प्रच्छन्न थी। बर्मा के कई कैदियों और मुगल शासन से जुड़े लोगों को भी यहां निर्वासित किया गया था।

19वीं शताब्दी के अंत में स्वतंत्रता आंदोलन में तेजी देखी गई और कई कैदियों को अंडमान में निर्वासित किया जा रहा था। उसी के परिणामस्वरूप, एक उच्च सुरक्षा जेल की आवश्यकता महसूस की गई क्योंकि अधिकांश कैदी भारतीय जेलों में रहने के बजाय द्वीपों में निर्वासित रहना पसंद करते थे। यह आवश्यकता तब पूरी हुई जब यहां सेलुलर जेल का निर्माण किया गया, जिसे "अधिक व्यापक रूप से गठित दूरस्थ दंड स्थान के भीतर बहिष्करण और अलगाव का स्थान" माना जाता था।

सेलुलर जेल स्मारक

1947 में आजादी के बाद, 'पूर्व अंडमान राजनीतिक कैदी के बिरादरी सर्कल' के कई सदस्यों ने जेल का दौरा किया। सरकार के साथ बहस और विचार-विमर्श के बाद, यह निर्णय लिया गया कि जेल को संरक्षित किया जाना चाहिए और सेलुलर जेल को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया था, इसके भवन पर कोई महत्वपूर्ण प्रभार नहीं लगाया गया था। प्रधानमंत्री ने 11 फरवरी 1979 को स्मारक को भारत के लोगों को समर्पित किया।

Sunday, June 20, 2021

The Flying Jatt Milkha Singh


  मिल्खा सिंह


भारत ने अपने नायाब हीरे को खो दिया. महान एथलीट मिल्खा सिंह अब हमारे बीच में नहीं रहे. उनका कोविड-19 की वजह से निधन हो गया. भारत की हर पीढ़ी मिल्खा सिंह को सलाम करती है. ओलिंपिक खेलों में वह भले ही मेडल जीतने से चूक गए थे लेकिन एक समय था जब दुनिया भर में उनके नाम का डंका बजता था. 

फ्लाइंग सिख' नाम से मशहूर मिल्खा सिंह का जन्म साल 1929 में पाकिस्तान के मुजफरगढ़ के गोविंदपुरा में हुआ था. उन्होंने अपने जीवन में कई कठिनाईयों का सामना किया. भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के वक्त उनको भारत आना पड़ा लेकिन उस दौरान उन्होंने 14 में से आठ भाई बहनों और माता-पिता को खो दिया.इन सब यादों के साथ वो भारत आए और सेना में शामिल हो गए. सेना में भर्ती होना मिल्खा सिंह का सबसे जबर्दस्त फैसला था. इस फैसले ने उनकी पूरी जिंदगी बदल दी और एक क्रॉस-कंट्री रेस ने उनके प्रभावशाली करियर की नींव रखी. इस दौड़ में 400 से अधिक सैनिक शामिल थे और इसमें उन्हें छठा स्थान हासिल किया था.

मिल्खा सिंह ने 1956 में मेलबोर्न ओलिंपिक में 200 मीटर और 400 मीटर के दौड़ में भारत के प्रतिनिधित्व किया, परन्तु उस स्पर्धा में अनुभव की कमी के कारण कुछ विशेष नही कर पाए।

1958 में उन्होंने नेशनल गेम्स में 200 मीटर और 400 मीटर में रिकॉर्ड बनाये। बाद में एशियाई खेलों में उन्होंने इसी इवेंट में स्वर्ण पदक जीते। 1958 में उन्होंने कॉमनवेल्थ गेम्स में 400 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने 1962 में जकार्ता में एशियाई खेलों में 400 मीटर और 4×400 मीटर रिले में भी स्वर्ण पदक जीते।

उन्होंने 1958 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। उनके जीवन पर ‘भाग मिल्खा भाग’ नामक फिल्म भी बनी है। मिल्खा सिंह के पुत्र जीव मिल्खा सिंह एक स्टार गोल्फर हैं।

पाकिस्तान में हुए एक इंटरनेशनल एथलीट में मिल्खा सिंह ने भाग लिया. उनका  मुकाबला अब्दुल खालिक से हुआ. यहां मिल्खा ने अब्दुल को हराकर इतिहास रच दिया. इस जीत के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने उन्हें 'फ्लाइंग सिख' की उपाधि से नवाजा.

अब्दुल खालिक को हराने के बाद उस समय के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान मिल्खा सिंह से कहा था, 'आज तुम दौड़े नहीं उड़े हो. इसलिए हम तुम्हे फ्लाइंग सिख के खिताब से नवाजते हैं'. इसके बाद से मिल्खा सिंह को पूरी दुनिया में 'फ्लाइंग सिख' के नाम से जाना जाने लगा.



Saturday, June 19, 2021

महाराणा प्रताप : मेवाड़ का वीर योद्धा


महाराणा प्रताप : मेवाड़ का वीर योद्धा
 महाराणा प्रताप : मेवाड़ का वीर योद्धा

महाराणा प्रताप सिंह उदयपुर, मेवाड़ में शिशोदिया वंश के राजा थे। प्रताप की वीरता और दृढ़ संकल्प के कारण उनका नाम इतिहास के पन्नों में अमर हो गया। उन्होंने कई वर्षों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ युद्ध किया और उन्हें कई बार युद्ध में पराजित भी किया। वह बहादुर, निडर, स्वाभिमानी और बचपन से ही स्वतंत्रता से प्यार करते थे । स्वतंत्रता प्रेमी होने के नाते, उन्होंने अकबर की अधीनता को अस्वीकार कर दिया।

महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को उत्तर-दक्षिण भारत के मेवाड़ में हुआ था। प्रताप उदयपुर के राणा उदय सिंह और महारानी जयवंता बाई के पुत्र थे।महारानी जयवंता के अलावा राणा उदय सिंह की अन्य पत्नियाँ थीं, जिनमें रानी धीर बाई उदय सिंह की प्यारी पत्नी थीं। रानी धीर बाई का इरादा था कि उनके बेटे जगमल राणा उदय सिंह का उत्तराधिकारी बनें। इसके अलावा राणा उदय सिंह के दो बेटे शक्ति सिंह और सागर सिंह भी थे। राणा उदय सिंह के बाद गद्दी संभालने का उनका भी इरादा था, लेकिन प्रजा और राणा जी दोनों प्रताप को उत्तराधिकारी मानते थे। इस कारण ये तीनों भाई प्रताप से घृणा करते थे।

इस घृणा का लाभ उठाकर मुगलों ने चित्तौड़ पर अपनी विजय फैला दी। इसके अलावा, कई राजपूत राजाओं ने भी मुगल शासक अकबर के आगे घुटने टेक दिए और आधिपत्य स्वीकार कर लिया। इससे राजपूताना की शक्ति मुगलों को दे दी गई। यहां प्रताप ने अंतिम सांस तक लगातार संघर्ष किया। फिर भी राणा उदय सिंह और प्रताप ने मुगलों को अपने अधीन कर लिया।राणा उदय सिंह और प्रताप ने अपने परिवार के बीच आपसी मतभेदों के कारण चित्तौड़ का किला खो दिया, लेकिन अपनी प्रजा की भलाई के लिए, वे दोनों किले को छोड़ देते हैं। पूरा परिवार और लोग उदयपुर की ओर जाते हैं। प्रताप अपनी मेहनत और लगन से उदयपुर को समृद्ध बनाते हैं और प्रजा की रक्षा करते हैं।

अकबर के डर से या राजा बनने की लालसा के कारण कई राजपूतों ने खुद अकबर से हाथ मिला लिया। और इसी तरह अकबर राणा उदय सिंह को वश में करना चाहता था। अकबर ने अपने झंडे के नीचे राजा मान सिंह को सेना का सेनापति बनाया, इसके अलावा टोडर मल, राजा भगवान दास, सभी ने मिलकर 1576 में प्रताप और राणा उदय सिंह के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।

हल्दी-घाटी युद्ध (18 जून 1576)

यह इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध था, जिसमें मुगलों और राजपूतों के बीच भीषण युद्ध हुआ था, जिसमें कई राजपूतों ने प्रताप को छोड़कर अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली थी।1576 में, राजा मान सिंह ने अकबर की ओर से 5000 सैनिकों का नेतृत्व किया और हल्दीघाटी पर पहले से ही 3000 सैनिकों को तैनात करके युद्ध का बिगुल बजाया। अफगान राजाओं ने प्रताप का साथ दिया, जिसमें हकीम खान सूर ने प्रताप को अंतिम सांस तक सहारा दिया।हल्दीघाटी का यह युद्ध कई दिनों तक चला। मेवाड़ के लोगों ने किले के अंदर शरण ली थी। लोग और राज्य के लोग एक साथ रहने लगे। लंबे युद्ध के कारण, भोजन और पानी की भी कमी थी। महिलाओं ने बच्चों और सैनिकों के लिए स्व-खाना कम किया। इस युद्ध में सभी ने एकता के साथ प्रताप का साथ दिया।

उनके हौसले को देखकर अकबर खुद को राजपूतों के हौसले की तारीफ करने से नहीं रोक पाए। लेकिन भोजन की कमी के कारण प्रताप यह लड़ाई हार गए। युद्ध के अंतिम दिन, सभी राजपूत महिलाओं ने जोहर प्रणाली को अपनाकर अग्नि को समर्पित कर दिया। और दूसरों ने सेना से युद्ध किया और वीरगति को प्राप्त किया। सबसे वरिष्ठ अधिकारी पहले ही राणा उदय सिंह, महारानी धीर बाई जी और जगमल के साथ प्रताप के बेटे को चित्तूर से दूर भेज चुके थे।

युद्ध के एक दिन पहले उसने प्रताप और अजबडे को नींद का नशा देकर चुपके से किले से बाहर निकाल दिया। इसके पीछे उनकी सोच थी कि राजपुताना को वापस लाने के लिए अंतिम सुरक्षा के लिए प्रताप का जीवन आवश्यक है। जब मुगुला ने किले पर अधिकार कर लिया तो उसे प्रताप कहीं नहीं मिला और अकबर का प्रताप को पकड़ने का सपना पूरा नहीं हो सका। युद्ध के बाद कई दिनों तक जंगल में कड़ी मेहनत करने के बाद, प्रताप ने चावंड नाम के एक अज्ञात शहर को बसाया। अकबर ने बहुत कोशिश की, लेकिन वह प्रताप को वश में नहीं कर सका। महाराणा प्रताप एक जंगली दुर्घटना में घायल हो गए। 29 जनवरी 1597 को प्रताप ने अपने प्राण त्याग दिए। इस समय तक वह केवल 57 वर्ष के थे। राजस्थान में आज भी लोग उनकी याद में यह पर्व मनाते हैं।

लोग महाराणा प्रताप के तख्तापलट को नहीं बल्कि उनके आदमियों और उनके घोड़े चेतक के साहस और वफादारी को याद करते हैं।

युद्ध के दौरान, एक हाथी के दांत ने चेतक के पिछले पैरों में से एक को फाड़ दिया और उसे अपंग या स्थिर कर दिया। चोट लगने के बाद भी घोड़े ने हार नहीं मानी और अपने राजा को काठी पर बिठाकर चेतक अपने तीन पैरों पर सुरक्षित वापस चला गया।बहादुर घोड़ा अंत में गिर गया। अपने प्रिय घोड़े की मृत्यु पर विलाप करते हुए महाराणा का चित्रमय चित्रण है।

महाराणा प्रताप : मेवाड़ का वीर योद्धा
 महाराणा प्रताप : मेवाड़ का वीर योद्धा

हल्दीघाटी में अकबर के साथ युद्ध के समय चेतक महाराणा प्रताप का बहुत बड़ा मित्र था। इसने अपने जीवन को खतरे में रखा था और 25 फीट गहरे गर्त से कूदकर अपने मालिक की रक्षा की थी। यह भी कहा जाता है कि चूंकि वह एक बहुत ही आक्रामक घोड़ा था, केवल महाराणा प्रताप ही उसे वश में कर पाए थे। ऐसा माना जाता है कि घोड़े ने ही अपना स्वामी चुना था।आज हल्दीघाटी में चेतक का मंदिर है।


Friday, June 18, 2021

Man's First Space Journey

Man's First Space Journey
Man's First Space Journey

Today man has reached 'Moon' and the day is not far when man will have reached 'Mars'. ISRO has already confirmed water on the moon and has also sent its Mangalyaan. As technology progresses Human beings are crossing every boundary of space. But who was the one who first stepped into space? 

On April 12, 1961, a 27-year-old Soviet Air Force pilot made history by stepping into space. That pilot was none other than Yuri Gagarin of Russia. After this space voyage, Yuri Gagarin became the headlines of the media and became recognized around the world as the first astronaut. International Day of Human Space Flight is celebrated every year on 12 April in memory of this day. It may be a little surprising to know that before Gagarin, on November 3, 1957, the female dog 'Laika' was sent to space. Although she could survive only six hours in space. She died due to high temperature of the chamber. Rakesh Sharma was the first Indian who reached space in April 1984. After him, Ravish Malhotra, Kalpana Chawla, Sunita Williams have also traveled to space. 

Yuri Gagarin, the world's first astronaut , was born on March 9, 1934, in Klushino, a small village in western Moscow. Russia was then known as the Soviet Union. They were four siblings, where their father Alexei Avonovich Gagarin worked as a carpenter and mother Anna Timofeyna Gagarin worked in a milk dairy. 

Yuri Gagarin was just seven years old during World War II when the Nazis attacked the Soviet Union in 1941. The Gagarin family was made homeless from their home on the farm. The Nazis also sent Yuri Gagarin's two sisters to Germany as bonded laborers.

As Yuri Gagarin started studying at a trade school in Saratov, he was interested in mathematics and physics. In this school he learned metalworking. He also enrolled in a lowing club in the same and soon learned to fly airplanes. In the year 1955, he flew an airplane for the first time alone. Due to the increasing interest in flying, he got a job in the Soviet Air Force. Seeing his precise flying skills, the authorities sent him to the Arenberg Aviation School, where he learned to fly MiG aircraft.

During the job, in the year 1957 itself, he completed his graduation from the upper class. Now he became a fighter pilot, but his dream was to fly in space. When the Soviet government asked for applications to go to space, 3000 applications came, in which Gagarin was also one. Out of these, 20 people were selected for training, in which Gagarin was also selected. When the training started, one by one everyone went out and Gagarin remained as the most qualified astronaut. 

On 12 April 1961, Yuri Gagarin, in a brief speech, described this work as pride and responsibility for the country and lay in his capsule. He could not control it in any way. His spacecraft took off from Baikanur at 9:07 am. and he said "Poykheli (we go far)" Entering the space, Gagarin made a complete round of the earth. At this time the speed of Vostak  was 28.260 km per hour. After this, at 10.55 in the morning, his vehicle reached back to the earth.

When Gagarin was landing on earth, he was not in the vehicle. He had separated from the vehicle at an altitude of about 7000 meters and he landed through parachute. This was done for the security reasons. Although this thing was kept hidden by the Soviet Union for decades.

The space age began with this space travel. He began to train other astronauts. But unfortunately at the age of 34, on 27 March 1968, when he was on a test flight of a Miganad fighter jet, he met with an accident and died. It was later learned that a Sukhoi fighter jet coming from the front had hit the rear of his vehicle, causing his vehicle to fall down . A courageous cosmonaut had a tragic end, but Yuri Gagarin's name was etched in golden letters forever in world history.

Sunday, June 13, 2021

भारत में 29 राज्यों को उनके नाम कैसे मिले: उत्पत्ति और रोचक तथ्य

 


भारत ने अपना नाम Indus नदी से लिया और आर्य उपासकों ने Indus नदी को सिंधु कहा। फारस के आक्रमणकारियों ने इसे हिंदू में परिवर्तित कर दिया। इसलिए, 'हिंदुस्तान' नाम सिंधु और हिंदू के साथ जुड़ता है। हम सभी जानते हैं कि भारत एक बहुभाषी देश है जिसमें न केवल क्षेत्रफल और जनसंख्या के संदर्भ में बल्कि सांस्कृतिक या पारंपरिक रूप से, आधुनिकता, धर्म और विश्वास आदि के मामले में भी बहुत सारी किस्में और परिवर्तन हैं। इसीलिए हम इसे विविधता में एकता कहते हैं। भारत में उन राज्यों में अरबों लोग एक साथ रहते हैं जहां भाषा, इतिहास, शासकों आदि ने विशेष क्षेत्रों के नामों में योगदान दिया है।

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भारत के राज्यों को उनके नाम कैसे मिले?

1. जम्मू और कश्मीर

यह एक खूबसूरत घाटी है जिसे ऋषि कश्यय की घाटी के रूप में जाना जाता है, जहां से कश्मीर शब्द की उत्पत्ति हुई है। और संस्कृत में "का" का अर्थ है पानी और "शिमीरा" का अर्थ है सुखाना। जम्मू शब्द की उत्पत्ति इसके शासक राजा जम्बू लोचन के नाम से हुई है।

2. हिमाचल प्रदेश

इसका नाम संस्कृत मूल का है। हिम का अर्थ है 'बर्फ' और अचल का अर्थ है 'पहाड़' जिसका समग्र अर्थ है बर्फीले पहाड़ों का घर।

3. पंजाब

"पुंज" शब्द का अर्थ है पांच और "अब" का अर्थ है पानी यानी पांच नदियों की भूमि जो एक इंडो-ईरानी शब्द है।

4. उत्तराखंड

2000 में उत्तराखंड राज्य उत्तर प्रदेश से अलग हुआ. उत्तराखंड संस्कृत शब्द से बना है जिसका अर्थ है "उत्तरी भूमि"।

5. हरियाणा

हरियाणा दो शब्दों में बंटा हुआ है यानि "हरि" का अर्थ है विष्णु या भगवान कृष्ण का अवतार और "अना" का अर्थ है आना। ऐसा माना जाता है कि महाभारत काल में भगवान कृष्ण इस स्थान पर आए थे और इसलिए इसका नाम हरियाणा पड़ा।

6. उत्तर प्रदेश

उत्तर का अर्थ है उत्तर और प्रदेश का अर्थ है प्रांत। तो, हम इसे 'उत्तरी प्रांत' के रूप में कह सकते हैं।

7. राजस्थान

यह संस्कृत शब्द 'राजा' से बना है जिसका अर्थ राजा होता है। और पहले इसे राजपुताना के नाम से जाना जाता था जिसका अर्थ है 'राजपूतों की भूमि'।

8. बिहार

यह एक पाली शब्द 'विहार' से लिया गया है जिसका अर्थ है 'निवास' और समय के साथ यह बिहार में बदल गया। पहले, इसे बौद्ध भिक्षुओं के निवास या विहार के रूप में जाना जाता था।

9. पश्चिम बंगाल

यह संस्कृत शब्द 'वंगा' से बना है। और इसके बाद अलग-अलग संस्करण आए जैसे फारस में इसे बंगला, हिंदी में बंगाल और बंगाली में बांग्ला कहा जाता है। 1905 में बंगाल के विभाजन के बाद इसमें पश्चिम शब्द जोड़ा गया और 1947 में फिर से विभाजन हुआ जिसमें पश्चिम बंगाल भारत में एक राज्य बन गया और पूर्वी बंगाल बांग्लादेश के रूप में एक अलग राष्ट्र बन गया।

10. झारखंड

यह संस्कृत शब्द झार से बना है जिसका अर्थ है जंगल और खंड का अर्थ है भूमि। इसलिए, कुल मिलाकर इसे जंगल की भूमि कहा जाता है और इसे 'वनांचल' भी कहा जाता है।

11. ओडिशा

यह संस्कृत शब्द 'ओद्र विषय' या 'ओद्र देसा' से लिया गया है और यह मध्य भारत में रहने वाले ओड्रा लोगों को संदर्भित करता है।

12. छत्तीसगढ़

पहले इसे दक्षिण कोसल के नाम से जाना जाता था लेकिन इसके नाम के संबंध में कोई ठोस प्रमाण नहीं है। इसके अलावा, इसमें 36 किले हैं और हिंदी में 36 चट्टी है। इसलिए छत्तीसगढ़ के नाम से जाना जाता है।

13. मध्य प्रदेश

मध्य का अर्थ है मध्य और प्रदेश का अर्थ है प्रांत। तो, मध्य प्रांत का हिंदी संस्करण मध्य प्रदेश है। स्वतंत्रता से पहले राज्य के अधिकांश हिस्सों को केंद्रीय प्रांतों के रूप में अंग्रेजों द्वारा प्रशासित किया जाता था। 1950 में मध्य प्रांत और बरार को मकराई और छत्तीसगढ़ के साथ जोड़ दिया गया था जिसे अब 'मध्य प्रांत' के रूप में जाना जाता है।

14. गुजरात

यह गुजरा से उत्पन्न हुआ है और इस क्षेत्र पर 700 और 800 में उनके द्वारा शासन किया गया था और इसलिए इसे गुर्जरों की भूमि के रूप में जाना जाता है।

15. महाराष्ट्र

महाराष्ट्र की उत्पत्ति से संबंधित कई सिद्धांत हैं।

a) यह संस्कृत शब्द महा से बना है जिसका अर्थ है महान और राष्ट्र का अर्थ है राष्ट्र यानि महान राष्ट्र।

b) साथ ही, यह भी कहा जाता है कि अशोक के शिलालेख के अनुसार इसकी उत्पत्ति राष्ट्रिका नामक कुल से हुई है।

c) राष्ट्रकूट एक राजवंश था जिसने 8वीं से 10वीं शताब्दी तक शासन किया और राष्ट्र शब्द की उत्पत्ति 'रट्टा' से हुई है।

d) राष्ट्र शब्द की उत्पत्ति भी राठी या रथ से हुई है जिसका अर्थ रथ होता है।

16. गोवा

यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि गोवा का नाम कैसे और कहां से आया। हो सकता है कि इसकी उत्पत्ति संस्कृत शब्द 'गो' से हुई हो जिसका अर्थ गाय होता है। और कुछ का मानना ​​है कि इसकी उत्पत्ति यूरोपीय या पुर्तगाली भाषा से हो सकती है।

17. तेलंगाना

यह 'त्रिलिंग' शब्द से बना है जिसका अर्थ है तीन शिव लिंग।

18. आंध्र प्रदेश

यह संस्कृत शब्द आंध्र से लिया गया है जिसका अर्थ है दक्षिण। इस क्षेत्र में जनजातियाँ हैं जिन्हें 'आंध्र' के नाम से भी जाना जाता है। और अतीत में मौर्य अधिकारियों, सातवाहनों को आंध्र-भृत्य के रूप में जाना जाता था जिसका अर्थ है 'दक्षिण के अधिकारी'।

19. कर्नाटक

यह कारू से लिया गया है जिसका अर्थ है 'उदार' और नाद का अर्थ है 'भूमि' जो दक्कन के पठार को संदर्भित करता है।

20. तमिलनाडु

तमिलनाडु का अर्थ है तमिलों की मातृभूमि। इसके अलावा, तमिल का अर्थ है 'मीठा अमृत' और नाडु एक तमिल शब्द है जिसका अर्थ है मातृभूमि या राष्ट्र।

21. केरल

इसके नाम से जुड़ी कुछ थ्योरी हैं।

a) इसकी उत्पत्ति 'चेरना' से हुई है जिसका अर्थ है जोड़ा और 'आलम' जिसका अर्थ है भूमि।


b) केरलम शब्द की उत्पत्ति चेरा वंश के शासकों के साथ पहली से 5 वीं शताब्दी ईस्वी में 'चेरा आलम' शब्द से हुई है और बाद में इसे केरलम के नाम से जाना जाने लगा।


c) संस्कृत में केरलम शब्द का अर्थ है जैसे भूमि पर जोड़ा गया।

d) भौगोलिक रूप से, केरल की उत्पत्ति समुद्र द्वारा भूमि द्रव्यमान के योग के रूप में हुई है।

22. सिक्किम

इसकी उत्पत्ति लिम्बु मूल से हुई है जिसमें 'सु' का अर्थ है नया और 'खाइम' का अर्थ है महल यानि नया महल। इसके अलावा, सिक्किम एक तिब्बती भाषा है जिसे डेन्जोंग के नाम से जाना जाता है।

Formation of States in India

23. अरुणाचल प्रदेश

यह संस्कृत शब्द अरुणा से लिया गया है जिसका अर्थ है 'भोर की रोशनी' और आचा का अर्थ है 'पहाड़ यानी डॉन लिट माउंटेन।

24. असम

इसका नाम 'अहोम' शासकों के नाम पर पड़ा है, जिन्होंने लगभग छह शताब्दियों तक असम में शासन किया था। और अहोम भी आसमा शब्द से बना है जो एक इंडो आर्यन शब्द है जिसका अर्थ है 'असमान'।

25. मेघालय

इसकी उत्पत्ति संस्कृत शब्द 'मेघ' से हुई है जिसका अर्थ है बादल और 'आलय' का अर्थ है निवास यानि बादलों की भूमि।

26. मणिपुर

यह संस्कृत शब्द मणिपुर से लिया गया है जिसका अर्थ है गहनों की भूमि या गहना शहर।

27. मिजोरम

यह 'Mi' से बना है जिसका अर्थ है लोग और 'zo' का अर्थ हाइलैंडर है।

28. नागालैंड

इसकी उत्पत्ति बर्मी शब्द 'नाका' यानी नागा से हुई है जिसका अर्थ है कान की बाली या नाक छिदवाने वाले। इसे नागों की भूमि भी कहा जाता है।

29. त्रिपुरा

इसकी उत्पत्ति से संबंधित कई सिद्धांत हैं।

a) यह कोकबोरोक शब्द 'तुई' से बना है जिसका अर्थ है पानी और 'परा' का अर्थ है निकट।

b) इसके अलावा, इसका नाम उदयपुर में देवता त्रिपुरा सुंदरी से प्राप्त हो सकता है।

c) यह भी कहा जाता है कि इस क्षेत्र पर शासन करने वाले राजा त्रिपुरा के नाम से राज्य की उत्पत्ति हुई।



Friday, June 11, 2021

Indian Space Research Organisation

 

ISRO
ISRO

Indian Space Research Organization (ISRO) i.e. ISRO is the space institute of our beloved India, headquartered in Bangalore, Karnataka. ISRO was established in 1962 as "Indian National Committee for Space Research" (INCOSPAR). Which later became famous as ISRO.


 The main task of this institute is to provide a better space technology for India. This includes the development of satellites, sounding rockets, launch vehicles and ground systems. For the information of all of you, let us tell you that India's first satellite was launched on 19 April 1975, whose name was Aryabhatta. Which was named after Aryabhata, the great mathematician and astronomer of India.


 At that time our satellite was launched into space by the Soviet Union due to our lack of technology. That satellite stopped working after 5 days. But still it was a great achievement for India. After this second satellite Bhaskar, followed by Rohini satellite and after that many other satellites were successfully installed in space.

History of ISRO in Hindi

 It is about the time when India got independence and many Indian scientists of our country were contributing to the world of science. Dr. Vikram Sarabhai was also included in these scientists. The Indian space program was conceived by Vikram Sarabhai, that is why he is called the father of the Indian space program. In the time of Vikram Sarabhai, there was another great scientist named Homi Jahangir Bhabha, he is called the father of Indian nuclear program.

The "Indian National Committee for Space Research" (INCOSPAR) was established in 1962, about 15 years after India's independence. Whose name was changed to Indian Space Research Organization i.e. ISRO in 1969.  At this time, Vikram Sarabhai was elected as its chairman.

Thumba Equatorial Rocket Launching Station (TERLS) for the study of the upper atmosphere was established by INCOSPAR under the chairmanship of Sarabhai at Thiruvananthapuram, Kerala.

As time passed, ISRO's programs were also increasing and there was a shortage of many types of raw materials and technology. In view of this, ISRO was formed in 1969, and after this the Department of Space (DOS) was also established in June 1972.

After this India's first satellite made by ISRO – Aryabhata was launched by Soviet Union on 19 April 1975. In 1979, India launched the SLV-3 (Satellite Launch Vehicle) from the Satish Dhawan Space Center, which was unsuccessful.

After this, Rohini Observation Vehicle, built by India in 1980, became the first satellite to go into orbit by SLV-3. After this, two other types of rockets were developed by ISRO to launch satellites into Earth's orbit, first PSLV - Polar Satellite Launch Vehicle and second GSLV - Geosynchronous Satellite Launch Vehicle.

Through PSLV and GSLV, India launched many types of rockets for many types of communication and information about the earth. Satellites like GAGAN and IRNSS were launched by these rockets for navigation systems.

Achievements

  • ISRO got their first success in 1975, when India launched its first satellite, Aryabhata.
  • ISRO's next achievement was achieved in 1993, at this time India manufactured PSLV i.e. Polar Satellite Launch Vehicle.
  • GSLV (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle) was successfully launched in 2004 from the Satish Dhawan Space Center.
  • In 2008, Chandrayaan was successfully launched by ISRO.
  • India successfully launched Mangalyaan on 5 November 2013, which after 298 days on 24 September 2014 was successfully placed in the orbit of Mars. India was the first country to succeed in doing so.
  • When India did not have a cryogenic engine, America used to threaten sanctions under the guise of its policies. Because of this the Soviet Union which was helping us also withdrew their hands. Successfully tested the cryogenic engine in India after many years of hard work.
  • There was a time when we did not have a navigation system, during the Kargil war, India had asked for GPS service from America but America refused to provide GPS service. That is why India started the IRNSS  (project. Successfully launched all navigation satellites and named it NAVIC (Navik).
  • In 2017, ISRO made a record of launching 104 satellites simultaneously.
  • In 2019, the lander Vikram of the Indian lunar mission Chandrayaan-2 (India's Moon Mission Chandrayaan 2) could not land properly on the moon and on the way to its reach, ISRO has recorded many types of data, due to which it was 98% successful. It is assumed.

ISRO’s Upcoming Programs

  • ISRO is preparing to send humans into space by 2022. The name of this mission is Gaganyaan.
  • In 2022, Aditya-L1 will be sent to India for its first study of the Sun.
  • NISAR satellite which is a radar satellite will be launched in 2022.
  • India will launch its second satellite for the study of Mars in 2024, named Mars Orbiter Mission 2 (MOM 2) or Mangalyaan 2.
  • For the study of Venus, ISRO will launch its Shukrayaan-1 orbiter in 2025, which will give us information about the atmosphere of Venus.

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